LODH KSHATRIYA

Announcement:

This is a Testing Annocement. I don't have Much to Say. This is a Place for a Short Product Annocement

Tuesday 21 July 2015


Wednesday 15 July 2015

Maha Rani Avanti Bai Lodhi

वीरांगना महा रानी अवंती बाई लोधी



रानी अवंती बाई लोधी का जन्म नर्मदा नदी के पास मनखेड़ी गांव में राव जुझार सिंह के घर 16 ऑगस्ट सन 1831 को हुआ,
बचपन से ही उन्हें  घोड़ सवारी ,तलवार बाज़ी, तीर अंदाज़ी, आदि चीज़ो में बोहत रूचि थी, अवंती की रूचि को देखते हुए जुझार सिंह ने प्रशिक्ति भी नयुक्त कर दिया, और अवंती ने इनमे जल्द ही महारथ भी हासिल कार्लि,
""अवन्ति बाई" का विवाह रामगढ के युवराज "विक्रम आदित्य"" के साथ हुआ, विक्रम आदित्य राज पाठ  से ज़्यादा पूजा पाठ में रूचि रखते थे, अंग्रेजी कमिश्नर वाशिंगटन ने मौका पाकर  रामगढ रिहासत को कोअर्ट ऑफ़ वार्डस घोषित करदिया, और वहां अपना प्रकाषक भी नयुक्त करदिया, और फिर रानी अवंती  बाई ने इसका विरोध किया, अंग्रेज़ो ने हड़प नीति का उपयोग करते हुए, मध्य प्रान्त की कई रिहासतों पर कब्ज़ा करलिया, वहाँ  के राजाओ और प्रजा द्वारा  अंग्रेजी सरकार का विरोध किया गया,  31 मई 1857  को  अंग्रेज़ो के विरुद्ध  एक साथ विद्रोह करने के लिए क्रांतिकारियों द्वारा संकल्प लिया गया, वे गाँव - गाँव जाकर रोटी और कमल का फूल भेजने लगे जो अंग्रेज़ो के खिलाफ क्रांति में शामिल होने का सन्देश था, अचानक क्रांति की तैयारियों के बीच दो दुख़द घटना होगयी, एक राजा विक्रम आदित्य की मृत्यु हो गयी, और दूसरी जबलपुर में क्रांति की तैयारियों का भंडाफोड़ होगया, अंग्रेज़ो के विरुद्ध विद्रोह का पता उन्हें चलने पर अंग्रेज़ो ने मंडला के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह को तोप से उड़वा दिया, यह समाचार रानी अवंती  बाई तक पहुंचा तो रानी अवंती बाई अंग्रेज़ो के विरुद्ध हो गयी, रानी अवंती बाई घायल सिंहनी की तरह सही समय की प्रतीक्षा  कर रही थी,पद्मि नामक एक गाव के पास अवंती बाई की सेना ने अंग्रेजी सेना को  पहाड़ियों पर मोर्चा बंदी कर घेर लिया         
रानी अवंती बाई लोधी ने सन 1857 के समय में ही मध्य प्रदेश के रामगढ़  में स्तिथ  मांडला ज़िले  में  एक छोटे से कसबे से आज़ादी की लड़ाई शुरू करदी,सरकार की कूटनीति  के चलते जुलाई 1857 में उन्होंने क्रांतिछेड दी, रानी  अवंती  बाई ने करीब 4000 हज़ार से अधिक सैनिक बल तैयार किये, इस क्रांति में केवल सिपाहियों ने नहीं बल्कि अनेक राजाओं और महाराजाओं ने भी अपना योगदान दिया, झाँसी, कानपुर, मेरठ, सतारा, आदि सभी जगहों पर क्रांति के झंडे लहराने  लगे गए,
 रानी अवंती बाई  ने स्वयं  युद्ध  को  अपने  नेतृत्व में किया, और  उनके  इस  विद्रोह की सुचना जबलपुर के कमिश्नर को  मिली  तो  कमिश्नर ने रानी अवंती को पत्र द्वारा आदेश दिया की मण्ड़ाला के डिप्टी कलेक्टर से जाकर मिले और सुलह कर ले, अनियथा परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे, अवंती बाई लोधी ने कमिश्नर के आदेश का उल्लंघन करते  हुए  पूरी  शक्ति  के  साथ  अंग्रेजी  सरकार  से  युद्ध  किया,  इतना ही नहीं  रानी  ने  सरदारों  का भी  उत्साह  बढ़ाते  हुए कहा भाइयो जब भारत माँ  ही  ग़ुलामी  की  जज़ीरों  से  बँधी  हो  तब  हमें  सुख  से  जीने  का  कोई  हक़  नहीं।
हमे अपनी भारत  माँ  को  मुक्त  करवाने  के  लिए  ऐशो-आराम  को  तिलांजलि  देनी  होगी,  हमे  अपना  ख़ून देकर ही आप अपने  देश  को  आज़ाद  करा  सकते  है, रानी ने अपने व्यक्तित्व और गौरव द्वारा समस्त सैनिकों का उत्साह बढ़ाया, और अवंती बाई नेतृत्व में अंगेरजी सरकारी फ़ौज को मुँह की खानी पड़ी, 1 अप्रैल 1858 को ब्रितानी 1858 को ब्रितानी रामगढ़ पर टूट पडे़। रानी ने तलवार उठाई। सैंकड़ों सिपाही हताहत हुए। सेनापति को अपनी जान लेकर भागना पड़ा लेकिन ब्रितानी भी हार मानने वाले नहीं थे। वाशिंगटन के नेतृत्व में अधिक सैन्य बल के साथ पुन: रामगढ पर आक्रमण किया गया। इस बार भी रानी के कृ तज्ञ और बहादुर सैनिकों ने ब्रितानियों को मैदान चेड़ने के लिए बाध्य किया। यह युद्ध बड़ा चोकहर्षक था। दोनों तरफ़ के अनेक बहादुर सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए। रानी की ललकार पर रामगढ की सेना दुश्मनों पर टूट पड़ती। अवंतिका बाई के सफल नेतृत्व के कारण वाशिंगटन को पुन: मैदान छोड़ना पड़ा, रानी के सिपाही लड़ते-लड़ते थक चुके थे। राशन की कमी होने लगी फिर भी रानी ने सैनिकों में उत्सह भरा, उनकी कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया। उसे पता था कि ब्रितानी अपनी हार सदा स्वीकार नहीं करेंगे। नए सिरे से सैनिकों का संगठन किया गया। रानी की शंका सही सिद्ध हुई। तीसरी बार बड़ी तैयारी के साथ ब्रितानी सिपाही रामगढ पर टूट पड़े। घमासान युद्ध हुआ। रानी बहादुरी से लड़ी। अनेक सिपाही मारे गए,रानी समझ गई की विजय भी उनके पक्ष में नहीं। वह अपने कुछ सैनिकों के साथ जंगलों भाग गई और गुरिल्ला युद्ध का संचालन करने लगी। आशा थी कि रीवां नरेश रामगढ की मदद क रेंगे पर उन्होंने ब्रितानियों का साथ दिया।
हिम्मत की भी हद होती है केवल बहादुरी से काम कब तक चलता? न संगठित सेना थी, न विशाल आधुनिक शस्त्रागार ही। रानी ने अँग्रेज़ों के हाथों मरने की अपेक्षा स्वयं अपनी जान देना ज़्यादा उचित समझा, उनोहने खुद ही अपनी तलवार से अपना सीना चीर लिया। भारत माँ को मुक्ति के लिए इस महान नारी के बलिदान को हम सदा याद रखेंगे, रानी अवंती बाई लोधी का भी  नाम  स्वर्णाक्षरों  में गिना जाता है,


Tuesday 14 July 2015

लोध क्षत्रिय

 क्षत्रिय



लोह  शस्त्र धारी
क्षत्रिय कौन है और इनका इतिहास क्या है,
 यह किसकी संताने है,
 इन सभी प्रश्नो के उत्तर यहाँ उपलब्ध है,
लोध क्षत्रिय जाती पृथ्वी के पहले क्षत्रिय है,
मनुस्मृति के अध्याय VII-54 में और परशुराम साहित्य में 
सभी श्लोक में दर्शाया है के लोधी शब्द का अर्थ शूरवीर योद्धा 
के लिए प्रयोग किया जाता है।

Thursday 9 July 2015

भगत सिंह

शहीद भगत सिंह



भगत सिंह हमारे देश के प्रमुख क्रांतिकरिओ  में से एक है,

 जो आज के युवाओ के लिए प्रेरणा सोत्र है, 

भगत सिंह  का  जन्म   28  सितम्बर 1907 को  पंजाब  के  जिला  लायलपुर 

में  बंगा  गांव  "जो  अभी  पाकिस्तान  में  आता  है" 

और  वे  एक  देशभक्त  सिख  परिवार  में  जन्मे  थे,

उनकी माता का नाम विद्यावती कौर और पिता का नाम सरदार किशन सिंह था,

भगत सिंह का परिवार थे तो  सिख परिवार  मगर उनोहने  आर्य समाज के विचार को अपना लिया था।
और  उनके परिवार पर आर्य समाज व महर्षि दयानन्द की विचारधारा का गहरा असर था।
 भगत सिंह के जन्म के समय में  उनके पिता "सरदार किशन सिंह" एवं उनके दो चाचा 
"' स्वर्णसिंह " और  '' अजीतसिंह '" अंग्रेजों के विद्रोह  के कारण जेल में बंधी थे।

 जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ  उनके पिता एवं चाचाओं  को जेल से रिहा करदिया गया था ।

 इस शुभ  अवसर के समय  पर भगतसिंह के घर में खुशी और भी दोगुनी हो  गई । 

भगतसिंह के जन्म पर  उनकी दादी ने उनका नाम ( भागो वाला ) रखा था। 

जिसका  मतलब  है  अच्छे भाग्य वाला । बाद में उन्हें 'भगतसिंह' कहा जाने लगा। 

वह 14 वर्ष की आयु में  ही  क्रांतिकारी संस्थाओं  से 

जुड़ गए और  कार्य करने लगे ।  डी.ए.वी. (D.A.V स्कूल से उन्होंने नौवीं 

 कक्षा की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए । 1923 में उनोहने  इंटरमीडिएट की परीक्षा 

भी पास करली  और फिर  उनके  विवाह  की तैयारियां होने लगी तो वह लाहौर से 

भागकर कानपुर चले गए । फिर देश की आजादी के संघर्ष में  इस तरह  रंग 

गए  कि पूरा जीवन ही देश पर न्योछावर  कर दिया। 

भगतसिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस  और प्रक्रम  से  शक्तिशाली 

अंग्रेजी  सरकार को हिला के रख दिया, 

वह युवकों के लिए हमेशा ही एक महत्वपूर्ण प्रेरणा के रूप में बानी रहेगी।

Wednesday 8 July 2015

सन्त कबीर के दोहे

 सन्त कबीर के दोहे 


कबीर  दास  जी  के  दोहो  को  आप  जानते  होंगे  उन्होंने  अपने  दोहो  के  माध्यम  से  मनुष्य  जीवन  को 

सरल  शब्दों  में  दर्शाया  है,  इनके  दोहो  से  हम  प्रेरणा  लेकर  हमारा  जीवन  सरल  बना  सकते  है,

और  जीवन  आने  वाली  प्रतिएक  बाधा और  समस्या  का  समाधान  कर  सकते है,  




१ 





जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान। 


 



निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। 


 
                   
 
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई अक्षर प्रेम  का, पढ़े सो पंडित होय।"

 



 
 बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।


१० 


११ 


कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर.
१२ 

शिव ही शव है


शिव ही  शव है 
और 
शव  ही  शिव है 





शिव  और  शव  में  सिर्फ  एक  "इ"  की  "मात्रा"  का  अंतर  है,

 अगर  "शिव"  में  से  "इ"  की  "मात्रा"  को  हटा  दो  तो  वो  "शव"  कहलाती  है,

  ठीक  उसी  प्रकार  जबतक  हमारा  जीवन  है,  तबतक  इस  जीवन  को  प्रभु  भक्ति  में  लगाने  से  हमे  जीवन  जीने 

की  सही  दिशा  मिलती  है,  अगर  किन्तु   विपरीत  हमारे  जीवन  का   कोई  "उद्देश्य"  या   "लक्ष्य"  नहीं  तो  ये  जीवन 
व्यर्थ  है

"शव"  के  समान  है,  हमे  अपने  जीवन  का  सही  सदुपयोग  करके  इसको  जन  कल्याण  में  लगाना  चाहये,  

वरना  ये  शरीर  और आत्मा  कुछ  काम  के  नहीं,  जो  जन्म  लेगा  उसका  मरना  भी  निशित  है,  

मरने  के  बाद  वैसे  तो  ये  शरीर  "शव"  ही  हो  जाएगा  तो

इसे  "शव"  होने  से  पहले  "शिव"  को  प्राप्त  करादो,  


Friday 3 July 2015

Netaji Subash Chandra Bose

नेताजी सुबाष चन्द्र बोस 




स्वतंत्रता के प्रमुख सेनानी नेता जी सुभाषचन्द्र बोस भारतिय स्वतंत्रता संग्राम में एक बोहत महत्वपूर्ण व्यक्ति थे,सुभाषचन्द्र बोस भारतीय इतिहास के ऐसे युग पुरुष हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई को एक नया मोड़ दिया था. उनका एकमात्र उद्देशय अपने देश की स्वतंत्रता थी,उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे.
नेताजी को ब्रिटीश सरकार (British  Government ) द्वारा कई बार बंधी बनाया गया था,
वे भारतीय नेशनल कांग्रेस पार्टी के बोहत सक्रिय कार्य करता थे,  भारत की आज़ादी के लिए  उनेह 
अंतर्राष्ट्रीय समर्थन चाहिए था, इसिलए उनोहने अलग अलग समय पर मुसोलिनी, और हिटलर से मुलाकात की,
विश्व युद्ध 2 . के समय में वह ब्रिटिश सेना के खिलाफ थे, जापान, इटली और जर्मनी के नेताओं से भी बैठक की,
उनोहने जापान के पास जाकर इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया, पर
यह अभियान विफल रहा, मगर उनकी आत्मा को तोड़ने के लिए ये पर्याप्त नहीं था , जो चलो दिल्ली को शुरू करदिया
और जैहिंद का नारा जो सुबाष चन्द्र बोस द्वारा दिया गया था, आज भी गूँज रहा है !
उन्होंने कहा था, “स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियों! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है. आप ने आजादी के लिए बहुत त्याग किए हैं, किंतु अपनी जान की आहुति अभी बाकी है. मैं आप सबसे एक चीज मांगता हूं और वह है खून. दुश्मन ने हमारा जो खून बहाया है, उसका बदला सिर्फ खून से ही चुकाया जा सकता है. इसलिए तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा. इस प्रतिज्ञा-पत्र पर साधारण स्याही से हस्ताक्षर नहीं करने हैं. वे आगे आएं जिनकी नसों में भारतीयता का सच्चा खून बहता हो. जिसे अपने प्राणों का मोह अपने देश की आजादी से ज्यादा न हो और जो आजादी के लिए सर्वस्व त्याग करने के लिए तैयार हो.
सुभाष चन्द्र ने सशस्त्र क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की तथा ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन किया. इस संगठन के प्रतीक चिह्न एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था.

आजाद हिंद फौज या इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना वर्ष 1942 में हुई थी. कदम-कदम बढाए जा, खुशी के गीत गाए जा – इस संगठन का वह गीत था, जिसे गुनगुना कर संगठन के सेनानी जोश और उत्साह से भर उठते थे.

आजाद हिंद फौज के कारण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई. इस फौज में न केवल अलग-अलग सम्प्रदाय के सेनानी शामिल थे, बल्कि इसमें महिलाओं का रेजिमेंट भी था.

Param Aatma


हम सबमे परमात्मा का अंश  है 
इसीलिए हम आत्मा है और वो परमात्मा है 






Thursday 2 July 2015

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Wednesday 1 July 2015

Shri Rajiv Dixit


स्वदेशी चिकिस्ता 



राजीव भाई जी ने  कई किताबें लिखी है, और व्याख्यान भी दिया है, अधिकांश किताबें इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया 
(CD,SD Card's ,) के रूप में विब्भिन ट्रस्टो द्वारा प्रकाशित किया गया है,

About Rajiv Dixit

श्री राजीव भाई 


     

राजीव दीक्षित जी एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता थे।उन्होंने स्वदेशी आंदोलन,आजादीबचाओ आंदोलन,और विभिन्न अन्य कार्यों के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय हित के विषयोंपर जागरूकता फैलाने के लिए सामाजिक आंदोलनों शुरू किया था।[1]उन्होंने भारत स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय सचिव के रूप में कार्य किया था।[2]उन्होंने केवल भारतीय मूल के उत्पादों के उपयोग के लिए लोगो में जागरुक्ता और मज़बूत विश्वास जगाया।[3]उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय आर्थिक नीतियों में भारतीय इतिहास और मुद्दों के बारे मेंजागरूकता फैलाना भी ज़रूरी हैराजीव दीक्षित का जन्म भारत के नाह गांव अलीगढ़,उत्तर प्रदेश,में हुआ था।उनकी स्कूली शिक्षा प्रणाली गांव मेंबारहवीं कक्षा तक हुई।[5]उन्होंने एम.टेक M Tech किया था और एक संक्षिप्त अवधि के लिए वैज्ञानिक के रूप में काम किया था।राजीव दिक्षित जी का जन्म 30 नवमबर 1967 में अलीगढ के नाह गांव उत्तर प्रदेशमें हुआ था,उनोहोने गांव के स्कूल से 12.वि कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की M.techभी किया था और कुछ समय तकव्यग्यनिक के रूप में काम किया।वह स्वदेशी में विश्ववास रकते थे,उनोहने स्वदेशीआंदोलन और आज़ादी बचाओ आंदोलन पहल की,राजीव भाई जी के नेतृतव में नई दिल्ली में स्वदेशी जागरण मंच में 50000 से भी अधिक लोगों की रैली को संबोदित किया गया,राजीव भाई हमेशा सच ही बोलते थे,उनोहने सरल तरीके से बड़ी बड़ी बीमारियों का इलाज किस तरह हमारे घर में यूज़ होने वालीचीजो से बताया है,इनकी अॉडिपो और वीडियो CD'S मार्किट में उपलब्द है,राजीव भाई जी के बारे में जितना भी लिखो वो कम है,मेरी नज़र में वो माँ भारती के सच्चे सपूत है जय हिन्द जय माँ भारती

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