आयु + वेद =आयुर्वेद
पर आयुर्वेद की रचना कब और कैसे हुई ये शायद ही किसी को पता हो ,
लेकिन हम आपको यह जानकारी दे रहे है के आयुर्वेद की रचना कब और कैसे हुई,
आयु+वेद=आयुर्वेद, आयुर्वेद इन्ही दो शब्दों को जोड़कर बना है, यह दर्शन, विज्ञान, और कला, का मिश्रण है,
आयुर्वेद का अर्थ है, जीवन का ज्ञान और यही संक्षेप में कहे तो आयुर्वेद का सार है,
प्राचीन भारत में आयुर्वेद को चिकित्साशास्त्र कहते हैं,।माना जाता है विद्वानों ने इसकी रचना काल ईसा के 3,000 से 50,000 वर्ष पूर्व की थी । आयुर्वेद शास्त्र के रचनाकार आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते है, इंद्र ने भी यह विद्या अश्विनी कुमारों से प्राप्त की थी । इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा। भारद्वाज और अत्रि भी इस शास्त्र के रचनाकार माने जाते हैं।
किसी प्रकार के शारीरिक या मानसिक विकास से रहित होते हुए, ज्ञान, विज्ञान, बल, संपति, यश, परिजन आदि चीजों से समृद्ध व्यक्ति को सुखायु कहते हैं।
2. दुखायु
इसके विपरीत सभी सुविधाओं के होते हुए भी, शरीरिक या मानसिक रोग से पीडित या निरोग होते हुए भी साधनहीन या स्वास्थ्य और साधन दोनों से हीन व्यक्ति को दुखायु कहते हैं।
3. हितायु
स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज व लोगों के कल्याण में लगे रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं।
स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज व लोगों के कल्याण में लगे रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं।
4 अहितायु
इसके विपरीत जो व्यक्ति अविवेक, बुरा बर्ताव, क्रूरता, स्वार्थ, घमंड, अत्याचार आदि बुरी आदत रखने वाले समाज के लिए अभिशाप होते हैं, उन्हें अहितायु कहते हैं।
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