शिव ही शव है
और
शव ही शिव है
शिव और शव में सिर्फ एक "इ" की "मात्रा" का अंतर है,
अगर "शिव" में से "इ" की "मात्रा" को हटा दो तो वो "शव" कहलाती है,
ठीक उसी प्रकार जबतक हमारा जीवन है, तबतक इस जीवन को प्रभु भक्ति में लगाने से हमे जीवन जीने
की सही दिशा मिलती है, अगर किन्तु विपरीत हमारे जीवन का कोई "उद्देश्य" या "लक्ष्य" नहीं तो ये जीवन
व्यर्थ है
"शव" के समान है, हमे अपने जीवन का सही सदुपयोग करके इसको जन कल्याण में लगाना चाहये,
वरना ये शरीर और आत्मा कुछ काम के नहीं, जो जन्म लेगा उसका मरना भी निशित है,
मरने के बाद वैसे तो ये शरीर "शव" ही हो जाएगा तो
इसे "शव" होने से पहले "शिव" को प्राप्त करादो,
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation.
0 comments:
Post a Comment